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क्यों जान जोखिम में डालकर इजरायल जा रहे हैं भारतीय श्रमिक

Why are Indian workers going to Israel?
जौखम की ऐैसी-तैसी : सवा लाख प्रति माह सैलरी पाने के लिए कारीगरों की लगी रहती है कतार
बामुश्किल बीस हजार रुपये महीना कमाने वाले व्यक्ति को अगर डेढ़ लाख रुपये महीना वेतन दिया जाए तो वह कोई भी जोखिम लेने को तैयार है. चूंकि ये डेढ़ लाख रुपये जोड़-तोड़ या गलत काम से नहीं, बल्कि पसीना बहाकर कमाना है, इसलिए भारत के मजदूर खतरे में भी काम करने को तैयार रहते हैं. यह काम युद्धग्रस्त इजराइल में किया जाना है. इज़राइल में युद्ध की स्थिति ने कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को रोक दिया है. इसे दोबारा शुरू कर इजराइल सरकार देश में सामान्य स्थिति बहाल करना चाहती है. हमास के आश्चर्यजनक हमलों ने प्रमुख परियोजनाओं को रोक दिया और मजदूरों को घर भेज दिया।

इजराइल में अभी भी अशांति है. हमास के हमले गुरिल्ला प्रकार के होते हैं. इजराइल में घुसपैठ करने के लिए हमास द्वारा बनाई गई सभी सुरंगों का उपयोग नहीं किया गया है. इजरायली सरकार भारतीय कारीगरों की रक्षा करने का वादा करती है, लेकिन युद्धग्रस्त इलाकों में कोई किसी की रक्षा नहीं कर सकता।

इजराइल जाने को तैयार मजदूरों की कतार लगी हुई है. यहां जोखिम तो है, लेकिन सवा लाख रुपये प्रति माह की सैलरी उनके लिए बहुत बड़ी है. भारत में कुशल श्रमिक प्रति दिन मुश्किल से 800 रुपये कमाते हैं. यह भी निश्चित नहीं है. एक आम मजदूर प्रतिदिन बमुश्किल 300 रुपये कमा पाता है. इजराइल में सवा लाख की सैलरी के अलावा रहने और खाने के लिए 15 हजार रुपये अतिरिक्त मिलते हैं. संक्षेप में, भारत के कारीगर प्रति माह एक लाख रुपये से अधिक घर भेज सकते हैं।

ऑपरेशन विजय के तहत लगभग 15,000 कारीगरों को इज़राइल से भारत वापस लाया गया.
भारत ने सूडान में फंसे भारतीय कारीगरों को वापस लाने के लिए पिछले अप्रैल-मई में ऑपरेशन कावेरी चलाया था, फिर 12 अक्टूबर को इजराइल में फंसे भारतीय मजदूरों को सकुशल वापस लाने के लिए ऑपरेशन विजय लॉन्च किया गया. 15,000 श्रमिकों को वापस भेजा गया. इजरायली विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले 900 छात्रों को भी सुरक्षित भारत वापस लाया गया. अपने देश में कारीगर उतना नहीं कमाते जितना वे इज़राइल में कमाते हैं. इसलिए इजराइल में श्रमिकों की मांग ने भारतीय मजदूरों को युद्धग्रस्त माहौल में भी काम करने के लिए तैयार कर दिया।

इजराइल खाड़ी देशों और दुनिया के अन्य देशों में काम करने जाने वालों में उत्तरप्रदेश के मजदूर सबसे पहले हैं. बिहार दूसरे और पंजाब तीसरे स्थान पर है. पिछले महीने उत्तर प्रदेश ने इजराइल जाने वाले 16,000 कारीगरों की सूची बनाई थी. प्रत्येक कारीगर के परिवार वालों को भी इजराइल पर मंडरा रहे खतरे की जानकारी दी गई. उत्तर प्रदेश के श्रम मंत्री अनिल राजभर ने कहा कि; पहले चरण में 10,000 और फिर 6,000 कारीगरों को इजराइल भेजा जाएगा. उत्तर प्रदेश सरकार ने इजराइल जाने के इच्छुक कारीगरों के लिए लखनऊ में एक कार्यालय खोला है. पहली बार इजराइल जाने वाले मजदूरों की एक सूची तैयार की जाएगी, जिसमें उनके परिवार के सदस्यों के नाम, फोन नंबर आदि शामिल होंगे ताकि आपात स्थिति में उनसे संपर्क किया जा सके. कई कारीगरों के परिवारों ने कहा है कि; हम भगवान पर भरोसा करके अपने आदमी को इजराइल भेज रहे हैं।

उत्तरप्रदेश में, इलेक्ट्रीशियन, पेंटर, प्लंबर, बढ़ई, कारपेंटर और अन्य मजदूरों के पासपोर्ट के लिए विशेष कार्यालय स्थापित किए गए हैं. इजराइल जाने के इच्छुक कारीगरों के लिए लखनऊ में विज्ञापन दिये जाते हैं।

हर किसी को अपने परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है. इस जिम्मेदारी को पूरा करने के लिए धन की आवश्यकता होती है. मजदूरों के लिए पैसे का जरिया इजराइल जैसे देश हो सकते हैं. इजराइल जाने का जोखिम उठाने को इच्छुक कारीगर जानते हैं कि हमास का हमला कभी भी हो सकता है, लेकिन उन्हें पारिवारिक जिम्मेदारियां भी निभानी हैं. वे भारत में एक दिन भी ऐसा नहीं देख पाएंगे जब सवा लाख रुपए हाथ में आएंगे. संक्षेप में, किसीको तो इज़राइल जाने का जोखिम उठाना होगा, क्योंकि पापी पेट का सवाल है…

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